Saturday, 2 May 2020

लॉकडाउन की ( को ) रोना कविता 

कोरोना की दहशत से मानव 
"अबअभ्यस्त हो रहा है
अंदर ही अंदर अचानक
" मनअब सन्यस्त हो रहा है ,

दूर हुए थे जिन अपनों से उन 
अपनों का,अब अपनों से मिलने 
को दिल बेचैन हो रहा है ,

कोरोना से संक्रमित अपनों को
अपना कहने का हौसला भी
अब पस्त हो रहा है ,

देखकर कोरोना का यह 
चांडाली नृत्य
अब हर शख्स अपने घरों 
में ही मस्त हो रहा है ,

बीमारियों में मौतें तो 
देखी है बहुत मगर
कोरोना से मौत का रूप 
कितना वीभत्स हो रहा है ,

पाला पोसा जिन अपनों 
ने अपनों को
उनकी लाशों को आज 
अपनों का कांधा भी ,
नसीब नहीं हो रहा है

भयभीत हुआ इंसान अब
अनिश्चययुक्त भविष्य से 
चिंताग्रस्त हो रहा है

देख तेरे संसार की हालत 
भगवन,यह क्या हो रहा है ?

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